“बोतल मुक्त गाँव”अभियान की हुई शुरुआत,जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान नवजात शिशु के लिए अमृत समान- मदन सहनी
पटना- “जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान नवजात शिशु के लिए अमृत के समान होता है. समुदाय में इसे लेकर जानकारी भी है लेकिन सामाजिक बाध्यताओं एवं भ्रांतियों के कारण अभी भी लोग इसे अनदेखा करते हैं. जिला से लेकर गाँव स्तर तक जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान के महत्त्व को प्रसारित करने की जरुरत है. “बोतल मुक्त गाँव” अभियान की शुरुआत की जा रही है और इसे सफल बनाने के लिए सभी को प्रयास करने की जरुरत है”, उक्त बातें मंत्री, समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार मदन सहनी ने विश्व स्तनपान सप्ताह के उपलक्ष में आयोजित राज्यस्तरीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कहीं. कार्यशाला में सचिव, समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार प्रेम सिंह मीना, निदेशक समेकित बाल विकास सेवायें, बिहार डॉ. कौशल किशोर, राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, मातृ स्वास्थ्य डॉ. सरिता, राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, शिशु स्वास्थ्य डॉ. बी.पी.राय, विभागाध्यक्ष, शिशु रोग विभाग, डॉ. विनोद कुमार सिंह, यूनिसेफ की बिहार क्षेत्रीय कार्यालय प्रमुख, नफीसा बिनेते शफीक, पोषण विशेषग्य, यूनिसेफ रबी नारायण पाढ़ी, आईसीडीएस के पोषण सलाहकार डॉ. मनोज कुमार सहित सभी जिलों की डीपीओ एवं अन्य लोगों ने भाग लिया.
जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान के आंकड़े में होगा सुधार:
मंत्री, समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार मदन सहनी ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 31 प्रतिशत नवजात ही जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कर पाते हैं. इसे 60 प्रतिशत तक लाना हमारा लक्ष्य है. मंत्री महोदय ने बताया कि राज्य में संस्थागत प्रसव का आंकड़ा 90 प्रतिशत है और जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान को भी और बढ़ाने की जरुरत है. इसके लिए हर स्तर पर लोगों को इसके फायदों के बारे में अवगत कराने की जरुरत है. मदन सहनी ने बताया कि एक सुपोषित माता ही एक स्वस्थ शिशु की जननी होती है इसलिए गर्भवती महिलाओं के पोषण पर भी ध्यान देने की जरुरत है.
प्रसव कक्ष में कार्यरत चिकित्सकों की निगरानी जरुरी:
कार्यशाला को संबोधित करते हुए सचिव, समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार प्रेम सिंह मीणा ने कहा कि जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान सुनिश्चित करने के लिए प्रसव कक्ष में कार्यरत चिकित्सकों एवं नर्सों की निगरानी जरुरी है. इससे तुरंत स्तनपान के आंकड़ों में वृद्धि की जा सकेगी. सचिव, समाज कल्याण विभाग ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा 100 क्रेच खोलने की अनुमति प्राप्त हो चुकी है तथा 5 वर्किंग विमेंस हॉस्टल भी शीघ्र शुरू किये जायेंगे.
सभी पंचायत को एक वर्ष में बोतल मुक्त करने का है संकल्प:
कार्यशाला में शामिल प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए निदेशक, समेकित बाल विकास सेवायें, बिहार डॉ. कौशल किशोर ने कहा कि सभी पंचायतों को एक साल में बोतल मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए सभी को सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है. उन्होंने बताया कि आईसीडीएस निदेशालय में एक कॉमन रूम की व्यवस्था की गयी है ताकि स्तनपान कराने वाली कर्मियों को कोई असुविधा का सामना नहीं करना पड़े. कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल पर स्तनपान कराने के लिए उपयुक्त स्थान एवं माहौल सुनिश्चित करना सबकी जिम्मेदारी है.
स्तनपान है शिशु के स्वस्थ जीवन का पहला कदम:
डॉ. सरिता, राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, मातृ स्वास्थ्य ने बताया कि सिजेरियन से जन्मे नवजात को भी सभी चिकित्सीय संस्थानों में एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने का प्रयास किया जाता है. अगर जटिलता ज्यादा नहीं हो तो सभी नवजात को एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने का प्रयास किया जाता है. राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, शिशु स्वास्थ्य डॉ. बी.पी.राय ने बताया कि नवजात शिशु की पूरी देखभाल के लिए राज्य में एसएनसीयू के साथ अन्य संस्थान कार्यरत हैं. डॉ. राय ने बताया कि संस्थानों में नवजात की स्थिति को देखते हुए उन्हें तुरंत माँ द्वारा स्तनपान कराया जाता है.
कम स्तनपान से शिशु के मानसिक क्षमता पर पड़ता है बुरा प्रभाव:
यूनिसेफ की बिहार क्षेत्रीय कार्यालय प्रमुख, नफीसा बिनते शफीक ने बताया कि कम स्तनपान करने वाले शिशुओं के आईक्यू स्कोर में 2.6 पॉइंट की कमी देखी जाती है. इसलिए जरुरी है कि नवजात को जब तक हो सके स्तनपान कराया जाये. उन्होंने बताया कि विश्व में सिर्फ 42 देशों में ही कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल पर स्तनपान कराने के लिए समुचित सुविधा उपलब्ध है. पोषण विशेषज्ञ, यूनिसेफ रबि नारायण परही ने बताया कि स्तनपान को बढ़ावा देने और इसके महत्त्व को सभी से साझा करने के लिए हर दिन नियमित चर्चा जरुरी है. बच्चों के 6 महीने तक के पोषण को सुनिश्चित करने के लिए 6 महीने तक सिर्फ स्तनपान कराना आवश्यक है.