Khudneshwar Dham Temple;यहां मजार के बगल में विराजते हैं महादेव,हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक,इस अनोखी मंदिर की जाने कहानी
Khudneshwar Dham Temple; भारत विविधताओं का देश है। यहां हर जाति, धर्म और रंग के लोग रहते हैं। इन्हीं विविधताओं के आधार पर इंसान बंटा हुआ है। इतिहास गवाह है कि हर युग में कभी धर्म, जाति तो कभी संस्कृति और भाषा के नाम पर लोगों के बीच सौहार्द बिगाड़ने की हमेशा कोशिश हुई है।
हालांकि, हर दौर में धर्म और जाति से परे इंसान की एकजुटता के उदाहरण सामने आते रहे हैं। हिंदू-मुस्लिम एकता का एक ऐसा ही बेमिसाल प्रतीक बिहार के समस्तीपुर जिला स्थित खुदनेश्वर धाम मंदिर है। जिला मुख्यालय से करीब 17 किलो मीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित खुदनेश्वर धाम मंदिर में महादेव के साथ मजार की पूजा होती है।
खुदनेश्वरधाम सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग के साथ मजार की पूजा-अर्जना की जाती है। सावन के पवित्र महीने में समस्तीपुर सहित प्रदेश भर से लोग इस मंदिर में जलाभिषेक के लिए आते हैं। इस अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन भी किया जाता है। मेले में खाने-पीने से लेकर झूले और साज-सज्जा के सामानों की दुकानें सजती है।
राज्य के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में खुदेनश्वरधाम मंदिर भी शामिल है। स्थानीय लोग इसे बाबा खुदनेश्वर धाम, खुदनेश्वर स्थान, खुदनेश्वर महादेव मंदिर सहित कई नामों से पुकारते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर का नाम खुदनी बीबी नाम की एक मुस्लिम महिला के नाम से रखा गया है।
सात सौ साल पुराना है मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास करीब सात सौ साल पुराना है। कहा जाता है कि 14वीं सदी में इस इलाके में घनघोर जंगल हुआ करता था। यहां पर लोग मवेशियों को चराने लेकर आते थे। खुदनी बीबी नाम की एक मुस्लिम महिला भी अपनी गाय लेकर यहां हर रोज आया करती थी। एक दिन खुदनी बीबी गाय चराकर घर लौटी। गाय को खुंटा में बांधकर जब दूहने का प्रयास किया तो दूध नहीं निकला।कुछ दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा।
खुदनी बीबी के सपने में आए भगवान शिव
गाय के दूध नहीं देने से खुदनी बीबी परेशान हो गई। एक दिन गाय चराने के क्रम में उसने देखा कि उसकी गाय एक निश्चित जगह पर खड़ी होकर अपने थन से दूध गिरा रही है। उस रात उसके सपने में खुद महादेव आए। भगवान ने खुदनी बीबी से कहा कि उसने जंगल में जो भी देखा, वह किसी को न बताए।
कब्र खोदने के दौरान निकला शिवलिंग
हालांकि, खुदनी बीबी ने अपने परिवार को ये बात बता दी। संयोगवश उसी रात खुदनी बीबी का देहावसान हो गया। परिवार के लोग दफनाने के लिए उसी जगह पर जंगल में गए, जहां गाय हर रोज अपना दूध गिराया करती थी। कब्र खोदने के दौरान कुदाल शिवलिंग से टकाराई और वहां से खून बहने लगा। फिर लोगों ने उस जगह से तीन हाथ दक्षिण में दूसरी कब्र खोदकर खुदनी बीबी को दफन कर दिया।
ब्रिटिश काल में रखी गई मंदिर की नींव
इस घटना के बाद वहां पर लोगों की भीड़ जुट गई। हिंदू-मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने साथ मिलकर यहां पर शिवलिंग के साथ खुदनी बीबी के मजार की पूजा की। तब से ही मंदिर का नाम खुदनेश्वर स्थान मंदिर पड़ा। ब्रिटिश काल के दौरान, 1858 में नरहन एस्टेट ने इस मंदिर की नींव रखी थी। तब से अब तक यह मंदिर काफी बदल गया है। इसका विकास धार्मिक न्यास बोर्ड की देखरेख में किया गया है।
बसंत पंचमी और शिवरात्रि में लगता है मेला
पिछले दो दशक के दौरान इस मंदिर का देवघर के बैद्यनाथधाम के तर्ज पर भव्य निर्माण कराया गया है। जिले भर के लोगों ने भी मंदिर निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक सहयोग किया है। सावन के अलावा बसंत पंचमी और शिवरात्रि में यहां की रौनक देखते बनती है। बड़े स्तर पर मेले का आयोजन होता है।
मंदिर में मांगलिक कार्यों के लिए भी आते हैं लोग
हालांकि, यहां साल भर शिव भक्त माथा टेकने आते रहते हैं। यहां पर शादी, उपनयन, मुंडन संस्कार सहित अन्य मांगलिक कार्य भी होते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि सच्चे मन से जो भी भक्त खुदनेश्वरधाम में पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं, उनकी मनोकामना महादेव अवश्य पूरी करते हैं।