Friday, October 11, 2024
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क्या ये शरीर हमारा है या हम सिर्फ शरीर हैं,हम सब के अस्तित्व का प्रश्न है कि अस्तित्व है क्या:एसपी विनय तिवारी

समस्तीपुर के एसपी विनय ओम तिवारी आये दिन चर्चा का विषय बने रहते है क्राइम कंट्रोल को लेकर ।परन्तु वह एसपी की ड्यूटी निभाने के साथ साथ एक बेहतर लेखक भी है,उन्होंने आज अपने फेसबुक पोस्ट पर एक महत्वपुण मुद्दों असतितवपर  पोस्ट लिखा है।

उन्होंने लिखा है कि….मूल प्रश्न अस्तित्व का है। मेरे अस्तित्व का प्रश्न। आपके अस्तित्व का प्रश्न। हम सब के अस्तित्व का प्रश्न। पूरे ब्रह्मांड के अस्तित्व का प्रश्न। अस्तित्व के अस्तित्व का प्रश्न?

हम सब क्या हैं?
हम सब कौन हैं?
हम क्यों हैं? हमारा होना क्यों हुआ?
क्यों आवश्यक है आपका होना , मेरा होना , किसी का भी होना?
हमारे होने या न होने से क्या होता है?

और फिर हम सब तो लगातार बदल रहें हैं। जिसको जन्म, जिसको मृत्यु हम समझते हैं वो सब न प्रारंभ है और न ही अंत है।
तो फिर
अस्तित्व है क्या?
क्या ये शरीर हमारा है या हम सिर्फ शरीर हैं?
ये मन हमारा है या हम मन के हैं?
विचार हमारे हैं या हम विचारों से बने हैं?
हम स्थाई हैं या क्षणभंगुर?
यदि हम शरीर हैं तो शरीर में असंख्य अनगिनत कोशिकाएं हैं?
हम कोई एक कोशिका हैं या सभी कोशिकाओं में हम हैं? यदि सभी कोशिकाओं में हम हैं तो किस कोशिका में हम कितने हैं?

 

हम सभी के अंदर वो क्या है जो हम सभी में है और जो हमारा मूल है।
अर्थात
हमारा सबसे आधारभूत क्या है?
शाश्वत ये शरीर नहीं है? हां, नहीं है। मस्तिष्क की कोशिकाओं के संकेत भी नहीं है? हां ,नहीं है, पर कुछ तो होगा जो हमेशा रहेगा, जो चिरंतन सत्य को दर्शायेगा। पदार्थ का स्वरूप तो बदलेगा पर उसका बुनियादी निर्माण घटक जैसा तो कुछ होगा, जो शरीर में भी होगा, जो राख में भी होगा, जो धूल में भी होगा, जो खाक में भी होगा, जो कौस्तुभ में भी होगा । वो पदार्थ की मौलिक संरचना में होगा। जिसको हम मौलिक तत्व कह सकेंगे। जो कुछ मौलिक नियमों से संचालित होता होगा।

वो मौलिक तत्व क्या है जिसको आज भी तोड़ा नहीं जा सकता? कुछ तो ऐसा होगा जो विघटन से परे होगा,
जो सीमाओं को लांघता होगा, जो अविभाज्य होगा।
वो जो होगा वो हो सकता है हमारी इंद्रियों के परे होगा।
हो सकता है उसको सुनना, देखना, सूंघना, छूना हमारे लिए संभव नहीं हो।

 

पर कुछ तो ऐसा होगा जो टूटेगा नहीं। वो अपने होने के लिए किसी और पर निर्भर नहीं होगा। उसको कोई जनित नहीं करेगा। वो किसी और से मिल कर नहीं बना होगा। वो स्वयं में पूर्ण होगा। वो स्वयंभू होगा। वो जो हमारी शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक तीनों अवस्थाओं को जोड़ता होगा।

वो जननी के जन्म , पदार्थों के विघटन के परे होगा।
वो यदि नहीं टूटेगा, तो वो किन्हीं अन्य कणों से मिलकर नहीं बना होगा। तो वही मूल कण भी होगा। उसके होने से ही सबके होने का सार होगा। वो जो भी होगा वो मृत्यु जन्म के परे होगा। वो काल के कपाल पर नाचता होगा। वो स्थाई होगा।

 

वो एक गूंज होगा। वो तरंग होगा। वो एक नाद होगा।

वो प्रकृति के हर अस्तित्व के मूल में होगा।

जीवन उसी मूल कण की खोज है।

यदि ऐसा कोई मूल कण होगा तो वो भी अपने मूल नियमों से संधारित होता होगा।

यदि वो मूल हम सब में होगा,ब्रह्मांड के हर कण में होगा, तो हम सब, प्रकृति के समस्त कण उन मूल नियमों से ही संचालित हो रहे होंगे।

 

तो सभी तत्वों के संचालन का
एक ही नियम होगा।

वही इस जगत का सार्वभौमिक शाश्वत सत्य होगा

उसी सार्वभौमिक शाश्वत सत्य की खोज दर्शन, कला, विज्ञान और साहित्य का उद्द्देश्य दिखता है । ये सभी विधाएँ उपकरण और युक्ति की तरह लगती है,जो प्रकृति की जटिलतम रचनाओं, कठिनतम रहस्यों और शाश्वत सत्य को जानने की कोशिश में अनवरत गतिमान है।

हमारा जीवन भी उसी सार्वभौमिक सत्य को समझने का प्रयास है।

Life is all about searching that fundamental particle , the universal law and the ultimate truth.
समस्तीपुर एसपी :विनय ओम तिवारी

Samastipur SP: Vinay Om Tiwari

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