पटना के मरीन ड्राइव पर चाय बेचने वाली नाज बानो;पिता टीचर हैं,फिर भी मैं चाय बेचती हूं..जानिए पोस्ट ग्रेजुएट चाय वाली नाज की कहानी
पटना के मरीन ड्राइव पर चाय बेचने वाली नाज बानो!पिता टीचर हैं… फिर भी मैं चाय बेचती हूं… मेरे पिता कलेक्टर होते, तो भी मैं चाय बेचती… क्योंकि कलक्टर तो मेरे पिता होते न, मैं थोड़ी न होती. ये मेरा रोजगार है. इसमें किस बात की शर्म. ये कहना है पटना के मरीन ड्राइव पर चाय बेचने वाली नाज बानो का. इन दिनों पटना की ग्रेजुएट चाय वाली के बाद पोस्ट ग्रेजुएट चाय वाली नाज बानो खूब सुर्खियां बटोर रहीं हैं.
नाज दरभंगा के एक मुस्लिम परिवार से आती हैं. उन्होंने दरभंगा के ही एक कॉलेज से पीजी की पढ़ाई पूरी की है. उनके पिता शिक्षक हैं. इसके बावजूद नाज ने अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पटना की मरीन ड्राइव पर चाय का स्टॉल लगाया है. उन्हीं से जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी…
बुर्का पहनने की जगह तुम चाय बेच रही हो?
पहले मैंने चाय का स्टाल दरभंगा में ही लगाया था. मगर, वहां लोग ताने मारते थे और कहते थे कि अरे तुम तो मुस्लिम हो. फिर भी चाय बेचती हो. तुम्हें तो बुर्के में रहना चाहिए था. मगर, मेरा मानना है कि कोई भी मजहब रोजगार करने से नहीं रोकता है.
लोग मुझसे सवाल करते हैं कि बुर्का पहनने की जगह तुम चाय बेच रही हो? मगर, अब ही बताइए कि बुर्का पहनने से पेट तो भरेगा नहीं. मैं खुद का रोजगार कर आगे बढ़ना चाहती हूं. मैं खुद अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हूं.
मुस्लिम लड़की जानते ही लोग चाय पीए बिना लौट जाते लोग
कुछ लोग मेरी दुकान पर आते हैं और कहते है कि चाय बनाओ. मगर, जब उन्हें पता चलता है कि मैं एक मुस्लिम हूं, तो वो चाय पीए बिना ही वापस लौट जाते हैं.
पोस्ट ग्रेजुएट चाय वाली नाम रखते ही चलने लगी दुकान
इतने ताने सुनने के बाद मैं 10 दिन पहले पटना चली आई और अब यहीं पर रह रही हूं. मैंने मरीन ड्राइव पर अपना टी-स्टॉल लगाया है. मैं स्कूटी से रोजाना अपना सामान लेकर आती हूं और टी-स्टाल लगाती हूं.
पहले मैंने अपनी दुकान का नाम नहीं रखा था, तो ज्यादा बिक्री नहीं हो रही थी. अब मैंने अपने दुकान की नाम पोस्ट ग्रेजुएट चाय वाली रख लिया है. इसके बाद से काफी संख्या में लोग मेरे यहां आने लगे हैं.