जन सहभागिता से फाइलेरिया रोगियों के दर्द मिटाने आगे आ रही राखी
मुजफ्फरपुर। 18 मई,पांच साल तक बालमन को समेटना खुद को बेड़ियों में जकड़ने जैसा है। पीछे की बेंच पर अकेले बैठना। सहेलियों का ताना। बगीचों में न खेल पाना। आम लड़कियों की तरफ साइकिल का न हांक पाना, यह बातें मधुबनी, मीनापुर की राखी के मन पर एक चोट सी दे रही थी। वह अवस्था 12 वर्ष की थी, जब राखी को फाइलेरिया के कारण हाथीपांव हुआ। दिन प्रतिदिन बढ़ते सूजन ने उसके बचपन और बचपने को खत्म कर दिया था। अपनी सहेलियों को खेलते और खिलखिलाते निहारती राखी अंतर्मन से काफी हताश दिखती थी। कई जगह दिखाने के बाद भी उसकी इस बीमारी का इलाज न मिल पाया। लगभग एक वर्ष पहले उसकी मुलाकात पार्वती पेसेंट सपोर्ट ग्रुप के नेटवर्क सदस्यों से हुई। मार्गदर्शन पाकर राखी ने अपना इलाज सरकारी अस्पताल में कराना शुरू किया। एमएमडीपी किट और व्यायाम का सहारा लिया। आज राखी का पांव सामान्य की तरह दिखने लगा है। अब वह साइकिल भी हांकती है, स्कूल में सहेलियों के साथ बैठती भी है और सबसे बड़ी बात अब वह अपने भविष्य को लेकर आशान्वित भी है।
…..ताकि और न बने कोई राखी
राखी ने इसी वर्ष बोर्ड की परीक्षा पास की है। राखी कहती है, हाथीपांव में मिली राहत ने उसे जहां एक नई दशा दी वहीं एक दिशा भी, जिसमें वह अपने जैसे किशोरियों को फाइलेरिया के प्रति जागरूक करे। यह राखी की सजगता का ही प्रतिफल है कि उसने आंगनबाड़ी केंद्रों, स्कूलों तथा ग्रामीण समुदाय स्तर पर कई फाइलेरिया जागरूकता के कई सफल आयोजनों का नेतृत्व किया है। ग्रामीणों और किशोरियों को फाइलेरिया उन्मूलन के लिए तैयार किया है, ताकि कोई और राखी न बन पाए। अपने सपनों को मरते न देख पाए। जागरूकता की इस कड़ी के अलावा राखी ने फरवरी में हुए सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम के तहत भी प्रभावशाली भूमिका का भी निर्वहन किया। जिसकी प्रशंसा मीनापुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा पदाधिकारी सहित जिला भीबीडीसी पदाधिकारी डॉ सतीश कुमार ने भी की।
अब चेहरे की मुस्कान देखती है मां पार्वती
यह सच है कि राखी ने अपने बचपन को खोया है, पर राखी और उसकी मां पार्वती की एक सजगता ने राखी को पूरी जिंदगी के दुखों से दूर कर दिया। तभी तो अब राखी की मां पार्वती राखी के खत्म हो चुके पैर के सूजन को नहीं उसके प्यारे चेहरे की मुस्कान को देखती है।