वाराणसी के आचार्य ने उगते एवं डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व बताया
लखीसराय ।वाराणसी के सुप्रसिद्ध जाने माने प्रवचन कर्ता डॉ.मनोहर मिश्र ने छठ पर्व का आध्यात्मिक महत्व के साथ- साथ मानव मात्र के लिए व्यावहारिक महत्व की अद्भुत और अलौकिक व्याख्यान प्रस्तुत किए।
डॉ.मनोहर मिश्र महाराज ने बताया कि छठ पर्व भगवान सूर्य का बहुत हीं महत्वपूर्ण पर्व है । यह छठ पर्व चार दिन का होता है। पहला दिन नहाए खाए ।दुसरा दिन खडणा। तीसरा दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दान एवं चौथे दिन उगते हुए सूर्य के अर्घ्य के साथ व्रत का पारण होता है। इस चार दिवसीय छठ पर्व की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए डॉ.मनोहर मिश्र महाराज ने कहा कि नहाए खाए मतलब पवित्र जीवन से व्रत प्रारंभ होता है। दूसरे दिन खडणा का शुद्ध शब्द है खंडना ।दूसरे दिन शाम को व्रती लोग भगवान सूर्य की पूजा खीर की प्रसाद से करते हैं और भगवान सूर्य से प्रार्थना करते हैं की हमारा उपवास का व्रत बीच में खंडित ना हो ।इसलिए दूसरे दिन की पूजा को खंडना कहते हैं। जिसका अपभ्रंश शब्द है खडणा। तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सुबह में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसका व्यावहारिक अर्थ बताते हुए डॉ.मनोहर मिश्र महाराज ने बताया की हमारे घर के, परिवार के, समाज के जो बड़े बुजुर्ग लोग हैं वही हमारे लिए डूबते हुए सूर्य के समान हैं ।इनका जीवन अस्ताचल गामी यानी कभी भी हमारे बीच से जा सकते हैं ।इसलिए इन बड़े बुजुर्ग लोगों को पहला अर्घ्य यानी अपनी कमाई का पहला हिस्सा समर्पित करना चाहिए।
माता पिता एवं बड़े-बुजूर्ग का आज्ञा पालन करना एवं उनके प्रति अपने कर्तव्य का पालन करना यही डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पण कर प्रेरणा लेना चाहिए।
चौथे दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पण करना मतलब छोटे बच्चे का सिर्फ पालन पोषण हीं नहीं करें बल्कि उनकी शिक्षा दीक्षा का उचित व्यवस्था पर अपने धन का एक अंश खर्च करना चाहिए।
यही उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पण कर हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। डॉ.मनोहर मिश्र महाराज ने कहा कि छठ पर्व भगवान सूर्य के आध्यात्मिक व्रत के साथ साथ मानव मात्र के लिए व्यावहारिक मान सम्मान एवं आपसी भाईचारे का भी संदेश लेकर आता है। अतः हमें छठ पर्व के आध्यात्मिक महत्व के साथ साथ इसके व्यावहारिक संदेश को भी सब तक पहुंचाना चाहिए और खुद भी जीवन व्यवहार में धारण करना चाहिए तभी हमारा छठ पर्व मनाना ज्यादा सार्थक होगा।
इनपुट:एस के गांधी।