Sunday, November 17, 2024
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दुनिया के 80 और भारत के 85 फीसद मखाने का उत्पादन करता है बिहार;लेकिन अब घट रही है किसानों की आय

 

भागलपुर: वैसे तो कोरोना ने बाजार और उत्पादन पर प्रतिकूल असर डाला था, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि कोरोना ने कई चीजों का महत्व भी हमें समझाया। आहार में न्यूट्रीशन या पोषणयुक्त आहार भी इन्हीं में से एक है। कोरोना संकटकाल में लोग अपनी और परिवार की इम्यूनिटी के प्रति काफी सजग हो गए थे। इसका असर यह हुआ था कि पोषण से भरपूर मखाने की डिमांड काफी बढ़ गई थी।

डिमांड बढ़ने के कारण मखाना की कीमत 16 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थी। और जब कीमत बढ़ी, तो मखाना उत्पादन के प्रति लोगों की ललक भी बढ़ी। इसके बाद बिहार में मखाने के उत्पादन में 10 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। मखाना का उत्पादन तो बढ़ गया, लेकिन सुचारू बाजार व्यवस्था नहीं होने और कोरोना संकट टलने के बाद मखाने की घटती डिमांड ने अब मखाना उत्पादक किसानों की परेशानी बढ़ा दी है।

रिसर्च सेंटर के अध्ययन में सामने आया सच
अभी मखाना उत्पादक किसानों को उनके उत्पाद की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है। यह सच तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय परिसर स्थित एग्रो इकोनोमिक रिसर्च सेंटर बिहार-झारखंड के अध्ययन के बाद सामने आया है। एग्रो इकोनोमिक रिसर्च सेंटर ने मखाने की आपूर्ति शृंखला, विपणन एवं प्रसंस्करण पर अध्ययन किया। सेंटर की ओर से दरभंगा और कटिहार जिले में मखाना उत्पादन और मार्केटिंग चैनल को ध्यान मेंं रख कर अध्ययन किया गया। कटिहार और दरभंगा में अध्ययन के दौरान 200 मखाना उत्पादकों के बीच सर्वे किया गया। कटिहार में फील्ड एरिया में मखाना का उत्पादन होता है, जबकि दरभंगा में तालाब में मखाना का उत्पादन किया जाता है।

आंकड़ों में मखाना उत्पादन
30 से 35 हजार हेक्टेयर में होती है मखाने की खेती
40 से 45 लाख क्विंटल मखाना का उत्पादन
10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर परंपरागत बीज से होता है उत्पादन
30 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आधुनिक बीज से होता है उत्पादन
1 क्विंटल बीज से 40 से 45 प्रतिशत मखाना पॉप का रिकवरी रेट
किसानों के लिए बाजार 250 करोड़
मखाना का बाजार कुल 550 करोड़
सर्वे में बिहार के दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, सहरसा, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज जिले मखाना के उत्पादन के लिए मुख्य तौर पर सामने आए।
मखाना उत्पादन में आने वाली लागत

तालाब एरिया में मखाना उत्पादन पर प्रति हेक्टेयर 47 हजार 130 रुपये लागत आती है।
फील्ड एरिया में मखाना उत्पादन पर प्रति हेक्टेयर 53 हजार 351 रुपये लागत आती है।
तालाब एरिया में मखाना उत्पादन करने पर 13 हजार 688 रुपये का लाभ होता है।
फील्ड एरिया में मखाना उत्पादन करने पर 66 हजार 780 रुपये का लाभ होता है।
मखाना उत्पादकों को नहीं मिल रहा उचित मूल्य
उपभोक्ता मूल्य में किसानों को मिलने वाले हिस्से की बात करें तो तालाब एरिया में उत्पादित मखाना का 38.19 प्रतिशत जबकि फील्ड एरिया में उत्पादित मखाना का 34.20 प्रतिशत ही किसानों तक पहुंच पाता है। ऐसे में मखाना उत्पादकों की स्थिति सुधारने के लिए रिसर्च के बाद एग्रो इकोनोमिक सेंटर की ओर से सरकार को प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग के लिए कई अहम सुझाव दिए गए हैं।
प्रोडक्शन से संबंधित सुझाव

हाई-इल्डिंग सीड की उपलब्धता किसानों के लिए होनी चाहिए।
मखाना की खेती में अधिक से अधिक टेक्नोलाजी का इस्तेमाल होना चाहिए।
जल की नियमित सफाई होनी चाहिए।
मत्स्यजीवी सहयोग समिति को ही जलश्रोत का आवंटन होना चाहिए।
प्रोसेसिंग से संबंधित सुझाव

मखाना प्रोसेसिंग के लिए क्लस्टर का निर्माण कराया जाना चाहिए।
रिसर्च एंड कॉस्ट इफेक्टिव प्राइस का निर्धारण होना चाहिए।
स्टोरेज फैसिलिटी की व्यवस्था होनी चाहिए।
मशीन क्रय पर किसानों को सब्सिडी मिलनी चाहिए।
मार्केटिंग से संबंधित सुझाव

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मखाना को लोकप्रिय बनाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए।
रेल से ट्रांसपोर्टेशन में अधिक किराया लिया जाता है। वॉल्यूम के हिसाब से मखाना उत्पादकों से किराया नहीं लिया जाना चाहिए।
कृषक उत्पादक समूह को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
मखाना उत्पाद में लगातार वैल्यू एडिशन किया जाना चाहिए।
किसका क्या है कहना?

“भारत सरकार ने 15 मई 2020 को आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत माइक्रो फूड इंटरप्राइजेज के लिए दस करोड़ रुपये दिए थे। इसी योजना के तहत बिहार में मखाना उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सर्वे करने के निर्देश दिए गए थे। मखाना का बाजार 550 करोड़ का है, जिसमें किसानों के हिस्से मात्र 250 करोड़ रुपये ही आता है। कोरोना संकट के समय मखाना की कीमत 16 हजार क्विंटल तक पहुंच गई थी, लेकिन अभी घटकर 7950 प्रति क्विंटल तक रह गई है।-डा. रंजन सिन्हा, प्रधान अन्वेषक मखाना अनुसंधान परियोजना

Kunal Gupta
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