Sunday, November 24, 2024
PatnaSamastipur

मखाने के स्टार्टअप से बिहार में युवा निकाल रहे स्वावलंबन की नई राह, छोड़ दी बड़ी कंपनी की नौकरी

मुजफ्फरपुर। बिहार में किसान अब मखाना की खेती और बिक्री तक ही सीमित नहीं रह गए हैं। कई किसानों ने इसकी व्यावसायिक राह तलाश ली है। वे मखाना के नए-नए स्वाद और अलग रेसिपी उपभोक्ताओं तक पहुंचा रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नौकरी छोड़ क्षेत्र के युवा भी मखाना के स्टार्टअप से जुड़ रहे हैं। मूल्यवर्धित उत्पादों की डेढ़ दर्जन से अधिक यूनिट दरभंगा व मधुबनी में ही लगाई गई हैं।

 

भौगोलिक संकेत (जीआइ) टैग मिलने के बाद तो मिथिला का मखाना अब सुपरफूड के रूप में विश्व पटल पर है। इसके विभिन्न तरह उत्पाद इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दुबई, इराक, ईरान में सप्लाई हो रही है। इसकी सप्लाई करने वाले मधुबनी के उद्यमी मनीष आनंद की योजना अमेरिका में यूनिट लगाने की है।

बिहार में मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा, सहरसा और खगड़िया में मखाना की खेती होती है। 35 हजार 224 हेक्टेयर में हर साल 56 हजार 388 टन गुड़ी का उत्पादन होता है। इससे 23 हजार 656 टन लावा निकलता है। सबसे अधिक खेती पूर्णिया व कटिहार में क्रमश: 7000 व 6500 हेक्टेयर होती है। उत्तर बिहार के मधुबनी और दरभंगा में करीब साढ़े नौ हजार हेक्टेयर में मखाने की खेती होती है। राज्य में मखाने का औसत कारोबार 850 करोड़ रुपये का है।

स्वाद और रेसिपी का कारोबार
दरभंगा के मखाना उद्यमी राजकुमार महतो कहते हैं कि एक दौर था, जब इसका इस्तेमाल पूजा-पाठ और फलाहारी में ही होता था। अब इसके स्वाद और रेसिपी का कारोबार हो रहा। उनकी तीन पीढ़ी मखाने के व्यवसाय से जुड़ी है। चौथी पीढ़ी में बेटा अतुल कुमार महतो कारोबार संभालने को तैयार है। अतुल ने दिल्ली में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और कैंपस प्लेसमेंट में 12 लाख के सालाना पैकेज की नौकरी को छोड़कर पिता के कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं।

मखाने का फूड चेन खोलने की तैयारी
दरभंगा निवासी सुमित्रा फूड्स के संस्थापक इंजीनियर श्रवण कुमार राय और उनकी पत्नी रुचि मंडल मखाने पर नया कान्सेप्ट लेकर आ रहे हैं। श्रवण फूड टेक्नोलाजी में इंजीनियरिंग के बाद एमबीए कर चुके हैं। एक दर्जन लोगों को रोजगार दे रहे हैं। उनकी ‘एमबीए मखानावाला’ के नाम से फूड चेन खोलने की तैयारी है। श्रवण कहते हैं कि मखाने के पारंपरिक उत्पादन व इस्तेमाल से आगे सुपरफूड के रूप में लाने की जरूरत है। हम रेस्टोरेंट में जंक फूड खाते हैं।

उसकी जगह मखाने से बने उत्पादन का सेवन क्यों नहीं कर सकते? हम राज्यों में मिलने वाले पारंपरिक खानपान को मखाने से जोड़ेंगे। दक्षिण भारत के लोगों को मखाना डोसा व इडली परोसेंगे। गुजरात से आनेवाले को मखाने का ढोकला खिलाएंगे। पास्ता व नूडल्स की जगह मखाना होगा। बाकी मिथिला की जो रेसिपी मखाना खीर, बर्फी, लड्डू, बिस्कुट, रबड़ी व चाट सहित अन्य तो हमारे मेन्यू में हैं ही।

युवा व्यवसायी प्रशांत कुमार कहते हैं कि मखाना प्रोसेसिंग यूनिट को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके विस्तार के लिए युवा कारोबारियों को जमीन आवंटन के साथ उद्योग विभाग द्वारा सब्सिडी व ऋण उपलब्ध कराने की पहल हो। जिले में प्रोसेसिंग यूनिटों की संख्या बढ़ने से मखाने की खपत बढ़ेगी। बड़े कारोबारियों का वर्चस्व खत्म होगा और किसानों को फसल का उचित दाम भी मिलेगा।

दरभंगा के किसान रामभरोस महतो बताते हैं कि हाल के दिनों में मखाना को औषधि और डाइट के रूप में लिया जाने लगा है। इस सोच ने इसके कारोबार को बढ़ावा दिया है। कोरोना काल ने इसपर सोचने का मौका दिया। अब खेती तक सीमित नहीं रहा। अब खुद पैकिंग कर मखाना बेच रहा हूं।

धान और गेहूं की तरह हो मूल्य निर्धारण
मधुबनी के मखाना किसान झड़ीलाल सहनी का कहना है कि फसल का उचित मूल्य दिलाने के साथ इसे उद्योग का रूप देने के लिए सहकारिता विभाग से जोड़ा जाना चाहिए। धान और गेहूं की तरह मूल्य निर्धारण कर खरीदारी होनी चाहिए। किसानों से लिए गए मखाने की पैकिंग कर बिक्री की व्यवस्था हो। इससे बड़े कारोबारियों का वर्चस्व कम होगा।

किसानों को अच्छी कीमत व मजदूरों को वाजिब मजदूरी मिलेगी। मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के प्रधान विज्ञानी डा. इंदुशेखर सिंह का कहना है कि मखाना का उत्पादन बढ़ाने और इससे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने का लगातार प्रयास हो रहा है।

बिहार कृषि निवेश प्रोत्साहन नीति के तहत मखाना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए समूह व निवेशकों को 25 से 35 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। उद्योग लगाने से लेकर अन्य जरूरी मदद दी जा रही है। इसका लाभ बहुत से व्यवसायियों को मिला है। – राकेश कुमार, जिला उद्यान पदाधिकारी, मधुबनी

Kunal Gupta
error: Content is protected !!