बरौनी में हर्ल फर्टिलाइजर फैक्ट्री बन कर तैयार,किसानों को अब नहीं होगी खाद की किल्लत
Hurl Fertilizer Factory ready in Barauni:‘मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरा-मोती” का गीत आपने सुना होगा और यह सच में एक बार फिर बरौनी फर्टिलाइजर की धरती ऐसा करने जा रही है. बरौनी हर्ल खाद कारखाने में अक्तूबर माह से नीम कोटेड यूरिया व अमोनिया का उत्पादन शुरू कर दिया गया है, जो जिले के लिए नववर्ष 2023 का सबसे बड़ा तोहफा साबित होगा. आने वाले समय में एक बार फिर बेगूसराय औद्योगिक जिले के रूप में देश व राज्य में शुमार होगा.
कारखाना बनकर तैयार
हर्ल बरौनी खाद कारखाने का निर्माण बिहार को खाद के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. कारखाना बनकर तैयार हो गया है. यहां प्रत्येक दिन 3850 मीटरिक टन नीम कोटेड यूरिया (प्रत्येक वर्ष 12.70 लाख एमटी) तथा 22 सौ टन अमोनिया का उत्पादन होना शुरू हो जायेगा. हालांकि अभी क्षमता से यहां कम उत्पादन हो रहा है, लेकिन शीघ्र ही अपने लक्ष्य को पूरा कर देश के विकास में अपना योगदान देने को तैयार हो जायेगा.
कारखाने के निर्माण में सर्वश्रेष्ठ तकनीक का किया गया प्रयोग
बताते चलें कि नया हर्ल खाद कारखाना दुनिया के अब तक के सर्वश्रेष्ठ तकनीक का प्रयोग कर बनाया जाने वाला गैस आधारित खाद कारखाना है, जिससे प्रदूषण की संभावना नहीं के बराबर है. 8388 करोड़ की लागत से बनने वाले हर्ल खाद कारखाने की क्षमता प्रतिदिन 2200 मीटरिक टन अमोनिया व 3850 मीटरिक टन यूरिया का उत्पादन करने की होगी. कारखाने के निर्माण से विकास के नये-नये रास्ते खुलेंगे और रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी तथा क्षेत्र में खुशहाली और शांति आयेगी.
हर्ल से उत्पादन में देरी की वजह से कारखाना निर्माण का लागत बढ़ा
विदित हो कि आइओसीएल, एनटीपीसी, कोल इंडिया तथा एचएफसीएल के संयुक्त उपक्रम हिंदुस्तान उर्वरक रासायन लिमिटेड (हर्ल) के मातहत बरौनी खाद कारखाना का निर्माण कार्य 18 मई, 2018 से शुरू हुआ. निर्माण कार्य शुरू होने के समय 36 महीने यानी मई 2021 से नीम कोटेड यूरिया उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन 2020-21 में कोरोना व अतिवृष्टि की वजह से निर्माण कार्य काफी हद तक प्रभावित हुआ. तब से खाद कारखाने के चालू होने की कई प्रस्तावित तिथि टलती गयी.
पीडीआइएल की देख रेख में बरौनी हर्ल खाद कारखाने से प्रतिदिन 2200 मीटरिक टन अमोनिया व 3850 मीटरिक टन नीमकोटेड यूरिया का उत्पादन होना है. 336 एकड़ में बने बरौनी खाद कारखाने के निर्माण कार्य पर कुल 7043 करोड़ रुपये खर्च होना था, लेकिन उत्पादन शुरू होने में विलंब के कारण हर्ल कारखाने का लागत लगातार बढ़ता रहा और यहां उत्पादन शुरू होते-होते लागत नौ हजार करोड़ के आसपास पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है.
वन नेशन वन फर्टिलाइजर ”भारत” ब्रांड के नाम से होगी बिक्री
बरौनी खाद कारखाना से पहला उत्पादित ब्रांड हीरा-मोती किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ था. लेकिन हर्ल से उत्पादित होने वाला खाद फिलहाल अपना यूरिया ब्रांड के तहत बिक रहा है. मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूरे देश में वन नेशन वन फर्टिलाइजर स्कीम का उद्घाटन करने के बाद हर्ल कारखाने से उत्पादित खाद अपना यूरिया के बजाय ”भारत” ब्रांड के नाम से बिक्री होगी.
खाद उत्पादन में गंगा के पानी का होगा उपयोग
हर्ल कारखाने के खाद उत्पादन में भूगर्भीय जल के बदले प्रत्येक दिन एक हजार दस घन मीटर गंगा जल का उपयोग होगा. अधिकारियों के अनुसार इस उपक्रम के चालू हो जाने से राज्य के किसानों को आसानी से रासायनिक उर्वरक और यूरिया उपलब्ध हो सकेगा. सबसे बड़ी बात है कि इस कारखाना को चलाने में पर्यावरण संरक्षण के लिए प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जायेगा. प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा योजना से बिहार, यूपी, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा को गैस पाइपलाइन से एकीकृत करने की परियोजना के तहत बरौनी खाद कारखाने को पीएनजी की आपूर्ति करने के लिए पाइपलाइन से जोड़ा जा चुका है. कारखाने के चालू होने से एक ओर जहां यूरिया की मारामारी खत्म होगी, तो दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन होने के साथ-साथ उद्योग के माध्यम से इकोनॉमी का नया सिस्टम डेवलप होगा. फिलहाल बरौनी खाद कारखाने से निकल रही मशीनों की आवाज, किसानों और बेरोजगारों के बीच नयी आशा का संचार कर रही है.
गलत औद्योगिक नीति की भेंट चढ़ा था कारखाना
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डाॅ श्रीकृष्ण सिंह के कार्यकाल में एचएफसीएल की बरौनी इकाई का निर्माण कार्य वर्ष 1967-68 से शुरू किया गया था. पहले 48 करोड़ की प्राक्कलित राशि से कार्य शुरू हुआ था. कार्य पूरा होते-होते यह राशि 92 करोड़ तक पहुंच गयी थी. वर्ष 1976 में एचएफसीएल की बरौनी इकाई से खाद का व्यावसायिक उत्पादन शुरू हुआ था. दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण कई साल लगातार घाटे में चलने पर एचएफसीएल की बरौनी इकाई को वर्ष 1992 में रुग्ण औद्योगिक इकाई की श्रेणी में डाल दिया गया था. उसके बाद वर्ष 2002 में इस इकाई को बंद करने की घोषणा कर दी गयी थी. कारखाना में काम करने वाले कर्मचारी व अधिकारी को वीआरएस के तहत छुट्टी दे दी गयी.
डाॅ भोला सिंह ने कई बार संसद में उठाया था कारखाने के पुनरुद्धार का मामला
बरौनी खाद कारखाने को लेकर कई आंदोलन हुए. वर्ष 2008 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं केंद्रीय रासायन एवं उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान ने शिलान्यास किया, लेकिन उसका निर्माण नहीं हो सका. इसके बाद तत्कालीन सांसद डॉ भोला सिंह ने इस मामले को मुखर होकर कई बार संसद में उठाया और अंततः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मई, 2016 को इसे चालू करने का अहम फैसला लिया तथा 25 जुलाई, 2016 को वित्तीय पुनर्गठन पैकेज के तहत करीब नौ हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ करते हुए पुनरुद्धार की मंजूरी दी. सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद 17 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेगूसराय आकर नये खाद कारखाने का शिलान्यास किया. इसके बाद निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर शुरू किया गया. मई 2021 तक खाद उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन कोरोना सहित अन्य कतिपय कारणों से प्रोजेक्ट को समय से पूरा नहीं किया जा सका.
कारखाना चालू होने की आस से लोगों में खुशी
प्रधानमंत्री द्वारा हर्ल खाद कारखाना के शिलान्यास के उपरांत कार्य योजना को मूर्त रूप होता देखकर क्षेत्र के लोगों में खुशी की लहर छा गयी. किसानों के मुरझाये चेहरे खिल उठे हैं. केंद्र सरकार के साथ-साथ तत्कालीन बेगूसराय सांसद डाॅ भोला सिंह के साथ वर्तमान सांसद गिरिराज सिंह के प्रयासों की लोग सराहना कर रहे हैं. वहीं कारखाने से उत्पादन तो शुरू हो गया है, लेकिन आधिकारिक रूप से कारखाने का उद्घाटन प्रधानमंत्री कब करेंगे, इस पर सस्पेंस बरकरार है.
ज्वाइंट वेंचर बनाकर हर्ल कारखाने का निर्माण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर गयी तो 25 मई, 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे चालू करने का फैसला लिया. 25 जुलाई, 2016 को वित्तीय पुनर्गठन पैकेज के तहत करीब 7169 करोड़ सूद सहित नौ हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ करते हुए पुनरुद्धार की मंजूरी दी. बिहार स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड को बंद पड़े कारखाने पर बिजली बिल मद में बकाया पांच हजार करोड़ की भरपाई के लिए 56 एकड़ जमीन दे दी गयी. आइओसीएल (29.67 प्रतिशत), एनटीपीसी (29.67 प्रतिशत), सीआइएल (29.67 प्रतिशत), एफआइसीएल (7.33 प्रतिशत) एवं एचएफसीएल (3.66 प्रतिशत) का ज्वाइंट वेंचर बनाकर हर्ल निर्माण शुरू करने की प्रक्रिया पूरी की गयी.
सड़क व रेलमार्ग से होगी यूरिया की सप्लाइ
हर्ल कारखाना से यूरिया को बिहार सहित अन्य प्रदेशों में रेल मार्ग से भेजने के लिए पूर्व-मध्य रेलवे सोनपुर के गति शक्ति कार्गो टर्मिनल के लिए अनुबंध किया जा चुका है. इस दिशा में रेलवे द्वारा कारखाना परिसर में 4.2 किलोमीटर रेलवे ट्रैक बिछाया गया. कारखाना से गति शक्ति कार्गो टर्मिनल के तहत रेल मार्ग से यूरिया खाद की पहली रैक को नवंबर महीने में रवाना किया गया. 1228 मीटरिक टन अपना यूरिया खाद को पहली बार मिनी रैक से लोड 21 वैगन को जमुई के लिए डिस्पैच किया गया.