Tuesday, November 26, 2024
EducationPatna

अनगढ़ सौंदर्य के बीच आस्था और वास्तुकला की उत्कृष्ट विरासत है बिहार का रोहतासगढ़ किला..

ब्रजेश पाठक, सासाराम (रोहतास) : यदि आप प्रकृति के अनगढ़ सौंदर्य, पहाड़ों की हरियाली, ऊंची चट्टानों से गिरते झरने, आदिवासी संस्कृति और भारत की उत्कृष्ट प्राचीन वास्तुकला को एक साथ देखना चाहते हैं तो बिहार के रोहतास जिले की कैमूर पहाड़ी पर रोहतासगढ़ किला जरूर आना चाहिए। आप यहां आकर भारत की विरासत पर गौरव की अनुभूति कर सकते हैं। पौराणिक मान्‍यता है कि त्रेता युग में राजा सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने सर्वप्रथम इस किले का निर्माण कराया। इसके बाद विभिन्न कालखंडों में अलग-अलग राजाओं ने इसका पुनरुद्धार और विस्तार किया।

सातवीं सदी में बंगाल के शासक शशांक देव यहीं से शासन चलाते थे। 12वीं से 13वीं सदी तक यह किला आदिवासी राजाओं (खरवार, उरांव, चेरों) के अधीन रहा। इसे आदिवासी अपना उद्गम स्थल मानते हैं। देश भर के आदिवासियों के लिए यह तीर्थस्थल की महत्ता रखता है। हर साल माघ त्रयोदशी से पूर्णिमा तक फरवरी माह में तीन दिनों तक यहां तीर्थयात्रा महोत्सव के दौरान आदिवासियों का महाजुटान होता है। इस दौरान पूरे रोहतासगढ़ किले का माहौल उत्सवी हो जाता है। किला परिसर के करम वृक्ष के इर्द-गिर्द पूजा-पाठ व समूह नृत्य होते हैं। 2022 में पहली बार राज्य सरकार के स्तर पर पांच मार्च को रोहतासगढ़ महोत्सव का आयोजन किया गया। अब अगले साल से आदिवासियों के तीर्थयात्रा महोत्सव से इसे जोड़ा जाएगा।

अगस्त से फरवरी भ्रमण के लिए उपयुक्त

रोहतासगढ़ किला आने का सबसे अच्छा समय अगस्त से फरवरी के बीच है। इस दौरान मौसम सुहाना होता है। वर्षा ऋतु श्रेष्ठ है, इस दौरान समुद्र तल से 1500 मीटर उंचाई पर यहां की प्रकृति पूरे साज-श्रृंगार के साथ विद्यमान होती है। उन्मुक्त विचरते पशु, पक्षी, पहाड़ की कंदराओं में फंसे बादल, धरातल की प्यास बुझाने को पत्थरों के बीच से राह निकाल स्वच्छ व पारदर्शी जलस्रोत, चारों ओर उगे औषधीय पेड़-पौधों से टकरा सुगंध बिखेरती हवा रोम-रोम झंकृत कर देगी। कैमूर पहाड़ी पर स्थित महादेव खोह, मांझर कुंड, तुतला भवानी जलप्रपात व धुआं कुंड के मनोरम दृश्य बरबस खींचते हैं। बड़ी बात यह कि यहां मोबाइल का नेटवर्क साथ छोड़ देगा, यह आपको इंटरनेट की दुनिया से नाता तोड़ प्रकृति से संवाद व समन्‍वय स्थापित करने का सुअवसर प्रदान करता है।

ऐसे पहुंचें रोहतासगढ़ किला

रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम और जिले का दूसरा प्रमुख शहर डेहरी आन सोन रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। सासाराम से रोहतासगढ़ की दूरी 65 किलोमीटर है। किले तक वाहन से जाया जा सकता है। यात्री वाहन जीप व मिनी बसें भी चलती हैं। डेहरी आन सोन से बंजारी होते रोहतास तक एनएच 119 से पहुंचें, यहां से तारडीह की ओर सड़क मुड़ती है, जो रेहल होते रोहतासगढ़ किले और पड़ोसी जिले कैमूर के अधौरा तक जाती है। तारडीह से लगभग 30 किमी तक पहाड़ पर चढ़ाई है, मोरंग बिछा रास्ता है, पहाड़ी रास्ते का यह सफर रोमांच भरा है। सुरम्य वातावरण के बीच किसी हिल स्टेशन का अहसास होता है। पर्यटकों की सुविधा के लिए आने वाले दिनों में रोहतासगढ़ किले तक पहुंचने को रोपवे का निर्माण होना है। अभी इसकी कार्ययोजना बनाई जा रही है।

किला परिसर है भव्य

28 वर्गमील में फैले इस किले में 83 दरवाजे हैं। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर आकर्षक पेंटिंग है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी और फांसी घर आज भी हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं, जिनकी भव्यता देखते बनती है। यह सब अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह ने बनवाया था। वह इसी किले से बिहार-बंगाल पर शासन करते थे और इसे प्रांत की राजधानी बनाया था। कुछ समय के लिए यह किला शेरशाह के आधिपत्य में भी रहा था। किला परिसर में आपको गणेश मंदिर, हाथी दरवाजा, हैंगिंग घर, हथिया पोल, आइना महल, जामा मस्जिद, दीवान ए खास, दीवान ए आम, रोहितेश्वर महादेव मंदिर देखने को मिलेंगे। महादेव मंदिर खास है, इसका निर्माण त्रेता युग में राजा रोहित ने कराया था। इसे चौरासन मंदिर भी कहते हैं। मां पार्वती के मंदिर से 84 सीढ़ी उपर शिवलिंग विद्यमान हैं।

विशिष्ट है देसी स्वाद

किले के इर्द-गिर्द खेती भी होती है। औषधीय पेड़-पौधों के बीच से बह रहे पानी से सिंचित फसलों के अन्न से बने भोजन का जायका विशिष्ट है। यहां की पहाड़ी गायों का दूध, दही और खोये का स्वाद मैदानी गायों से बिल्कुल अलग है। अगर आप दूध और इसके अन्य उत्पाद पसंद नहीं करते तो आपका सोच बदल जाएगा। यहां अंगीठी पर बना लिट्टी-चोखा भी विशिष्‍ट है।

औषधीय फल और जड़ी-बूटियों की भरमार

कैमूर पहाड़ी के जंगलों में आंवला, हर्रा, बहेरा, नागर मोथा, गुड़मार, मकोह, पियार समेत अन्य औषधीय जड़ी-बूटी काफी मात्रा में उपलब्ध हैं। पहाड़ी पर स्थित बरकट्टा गांव में हाट लगती है, जहां वनवासी इन जड़ी-बूटियों की बिक्री काफी कम कीमत पर करते हैं।

देश का 54वां टाइगर रिजर्व क्षेत्र बन रहा

कैमूर पहाड़ी पर बाघ, हिरण, भालू, बंदर, मोर के साथ खुले में विचरण करते अन्य जंगली पशु-पक्षी रोमांचित करते हैं। बाघ व भालू तो गाहे-बगाहे देखने को मिलेंगे, परंतु अन्य पशु-पक्षियों को आप करीब से देख सकते हैं। इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व क्षेत्र बनाया जा रहा है। यह बिहार का दूसरा तथा देश का 54 वां टाइगर रिजर्व क्षेत्र होगा। 480 वर्ग किलोमीटर में कोर तथा 1370 वर्ग किलोमीटर में बफर जोन रहेगा। टाइगर रिजर्व के बफर जोन में पर्यटक जंगल सफारी, बोटिंग व इको टूरिज्म का आनंद ले सकेंगे।
सोर्स:जागरण।

Kunal Gupta
error: Content is protected !!