Bihar Politics: खूंटा बदला तो भैंस बदल गई गाय में, नित्यानंद राय के सहारे लालू यादव का वोट दुहेगी भाजपा
पटना,आलोक मिश्रा। काला अक्षर भैंस बराबर, भैंस के आगे बीन बजाना, जैसे मुहावरे गढ़ने वाले संभवत: बिहार के तो रहे नहीं होंगे, वरना भैंस की इन खूबियों के अलावा उसकी खास खूबी से वे जरूर परिचित होते। बिहार की पालिटिक्स में खासा दखल है भैंस का। समय-समय पर राजनीति में प्रकट होती है यदुवंश के प्रतीक के रूप में और फिर नेपथ्य में चली जाती है। इस बार भी आई है, लेकिन रूप बदला हुआ है और खूंटा भी। राजद के खूंटे से यह भाजपा में चली आई है।
अभी तक अपने खूंटे में बांधे लालू प्रसाद यादव को असली यादव होने के लिए ज्यादा से ज्यादा दूध निकाल कर यदुवंशी होने का चैलेंज देने वाले गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ताल ठोक बैठे। ताल तो ठोकी भैंस का नाम लेकर, लेकिन दुहने का मिली गाय। गाय दुहकर उन्होंने असली यदुवंशी होने का सबूत दे दिया। हालांकि लालू यादव की जनीतिक विरासत संभालने वाले उनके बेटे तेजस्वी यादव को भैंस में कोई रुचि नहीं है। उनका फोकस आजकल कापी, किताब पर ज्यादा है। दुधारू भैंस राज्य के किसानों के लिए एटीएम है। लेकिन आजकल गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय भैंस को राजनीति में लेकर फिर आ गए हैं।
लालू प्रसाद के असली यादव होने पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। खुद को असली यादव सिद्ध करने के लिए गाय दुहने की उनकी एक तस्वीर इन दिनों सुखिर्यों में है। यादवों के बीच पैठ बनाने का पुराना फार्मूला उन्होंने निकाला है। अतीत में झांकें तो भैंस का बिहार की राजनीति में दमदार प्रवेश 1984 के लोकसभा चुनाव में हुआ। समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर विपक्ष के उम्मीदवार थे।
कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक रामदेव राय को मैदान में उतारा। दोनों के बीच गुरु-शिष्य का संबंध था। रामदेव राय के यादव होने पर सवाल उठ गया चुनाव में। कहते हैं कि प्रचार के दौरान रामदेव राय समस्तीपुर जिला के धमौन गांव गए। यह बहुत बड़ा गांव है। रामदेव राय ने भैंस दुह कर खांटी यादव होने का प्रमाण दिया। जब चुनाव परिणाम निकला तो कई लोगों का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया। रामदेव राय चुनाव जीत गए। कर्पूरी ठाकुर की हार हो गई थी। लोग चुनाव जीत कर खुश होते हैं।
रामदेव राय दुखी हो गए, क्योंकि लोकसभा जाने के लिए उन्हें अपने राजनीतिक गुरु कर्पूरी ठाकुर को परास्त करना पड़ा था। हालांकि रामदेव राय की जीत में भैंस की भूमिका स्थापित नहीं हो पाई, क्योंकि 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर चल रही थी। उसके बाद से भैंस राजनीति की मुख्यधारा से बाहर हो गई। अचानक 1990 में उसकी तकदीर बदली। लालू प्रसाद कृषक परिवार के रहे हैं। उन्होंने इस समुदाय के लोगों से अपना जुड़ाव दिखाने के लिए कहना शुरू किया कि मैं भैंस की सींग पकड़ कर उस पर चढ़ जाता था। सभाओं में खूब तालियां बजती थीं।
कृषक समाज से लालू की करीबी बढ़ती जा रही थी। शुरुआती दिनों में लालू के हरेक भाषण में भैंस जरूर रहती थी। वर्ष 1990 में लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने। दो साल बाद पहले चरवाहा विद्यालय की स्थापना मुजफ्फरपुर जिला के तुर्की में हुई। चरवाहा विद्यालय के जरिए गरीबों के उन बच्चों को शिक्षा देने का लक्ष्य रखा गया, जो गरीबी के कारण स्कूल के बदले गाय-भैंस चराने चले जाते थे। इस विद्यालय में पशुओं के लिए चारागाह भी था। बच्चे अपने पशुओं को लेकर स्कूल आते थे। पशुओं को चारागाह में छोड़ कर खुद कक्षा में चले जाते थे।
लालू प्रसाद के आलोचक कुछ कहें, लेकिन यह सच है कि चरवाहा विद्यालय ने वंचित बच्चों को अक्षर से परिचित कराने में बड़़ी भूमिका निभाई। अभी हाल में लालू प्रसाद जेल से रिहा होकर पटना आए तो वैशाली जिला के महुआ के राजद कार्यकर्ता नटवरलाल भैंस की सवारी कर उनसे मिलने पटना आए। भैंस को हरे रंग से रंगा गया था। नटवर खुद हरे रंग में नहाए हुए थे। उसके बाद मई से अगस्त के पहले सप्ताह तक भैंस आराम करती रही।
10 अगस्त को तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो वैशाली के भगवानपुर के उनके एक समर्थक केदार प्रसाद भैंस पर सवार होकर पटना के लिए चल पड़े। शपथ ग्रहण समाप्त हो गया। तेजस्वी यादव सरकारी कामकाज करने लगे। उन्होंने भैंस की चर्चा तक नहीं की। उपहार के बारे में उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से आग्रह किया- पुष्प गुच्छ के बदले कलम, किताब और कापी ही दें। कार्यकर्ता उनके आग्रह का सम्मान भी कर रहे हैं।