अब तक अन्य दलों से तोड़ चुके 93 विधायक, दूसरे दलों में सेंधमारी से नॉर्थ ईस्ट में भाजपा की ‘किलेबंदी
नई दिल्ली।
भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ वक्त से नॉर्थ ईस्ट में अपने गढ़ को मजबूत बनाने में जुटी हुई है। इसके लिए उसने अन्य दलों के विधायकों पर निशाना लगा रखा है। पिछले आठ साल में नॉर्थ ईस्ट में भाजपा अन्य दलों से कुल 93 विधायकों को अपने साथ जोड़ चुकी है। अगर देखा जाए तो यह आंकड़ा मिजोरम के 40 विधानसभा सीटों के दोगुने से भी ज्यादा है। इसकी शुरुआत तो 2003 में ही अरुणाचल प्रदेश से हो गई थी, लेकिन इस मुहिम ने असली रंग पकड़ा है 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद।
यहां पर कर दिया था ‘कांग्रेस मुक्त’
मणिपुर में शुक्रवार को जेडीयू के 5 विधायक भाजपा में शामिल हुए। नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र में भाजपा में अन्य दलों के विधायकों के शामिल होने का यह 15वां मामला था। इसकी शुरुआत हुई थी 2014 से जब एनसीपी के तीन विधायक भाजपा में पहुंचे थे। इसमें भी भाजपा का सबसे आक्रामक कदम अरुणाचल प्रदेश में देखने को मिला था। यहां पर 2003 और 2016 में दो बार भाजपा ने बिना चुनाव के ही सरकार बनाई थी। यहां पर कांग्रेस काफी लंबे समय तक शासन किया था। लेकिन भाजपा ने एक तरह से इस क्षेत्र को ‘कांग्रेस मुक्त’ ही बना दिया था।
पूर्व कांग्रेसियों पर निगाह
अब बात करते हैं उन 93 विधायकों जिन्होंने भाजपा का दामन थामा है तो इनमें से 32 पूर्व कांग्रेसी रह चुके हैं। इस लिस्ट में जेडीयू से आने वालों का नाम भी शामिल है। अरुणाचल प्रदेश में 2019 में छह जेडीयू विधायक भाजपा में शामिल हुए थे। इसके अलावा शुक्रवार को मणिपुर में पांच और उससे पहले बिहार से इस पार्टी के विधायक भाजपा में आ चुके हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, भाजपा में शामिल होने वाले वाले विधायकों में ममता बनर्जी की पार्टी से भी नाम शामिल हैं। पिछले कुछ वक्त में टीएमसी से नौ विधायक भाजपा का दामन थाम चुके हैं।
असम में सरमा साबित हुए गेमचेंजर
सल में नॉर्थ ईस्ट में भाजपा ने इस तरह की शुरुआत 2003 में ही की थी। तब उसने 36 विधायकों का समर्थन हासिल करके कांग्रेस के सरकार गिरा दी थी। हालांकि गेगांग अपांग के नेतृत्व में बनी भाजपा की सरकार केवल 42 दिनों के अंदर ही गिर गई थी। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नॉर्थ ईस्ट में भाजपा का वर्चस्व नए अंदाज में बढ़ने लगा है। असम में 2016 में भाजपा हेमंत बिस्वा सरमा को कांग्रेस से लेकर आई। भाजपा का यह कदम इस इलाके में उसके लिए गेम चेंजर साबित हुआ। सिर्फ सात महीने बाद सरमा ने यहां पर भाजपा की दूसरी बार सरकार बनवा दी। यह संभव हुआ था सत्ताधारी कांग्रेस के 32 विधायकों के पार्टी छोड़ने के चलते। इसके बाद भाजपा ने 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले असम का मॉडल मणिपुर में अपनाया। यहां उन्होंने कांग्रेस के एन बीरेन सिंह पर निगाह जमाई और जो तब सीएम आइबोबी सिंह के मुख्य प्रतिद्वंदी थे। चुनाव के बाद वह भाजपा के खेमे में आ चुके थे।