Friday, October 4, 2024
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बेटी की विदाई में होता है खास उपयोग, 1969 में दरंभगा की विंदेश्वरी देवी को मिला था राष्ट्रपति पुरस्कार..

 

कुंदन मिश्रा, महिषी (सहरसा)। सिक्की कला : किसी भी देश या प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान उसकी कला में प्रदर्शित होती है। कभी बिहार की पहचान रही मिथिला का सौंदर्य कही जाने वाली नायब सिक्की कला आज अपने अस्तित्व रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है। जबकि आज भी इस कला से निर्मित विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की मांग देश-विदेश से हो रही है। उपेक्षा और प्रोत्साहन के अभाव में आज यह कला गांव की गरीब महिलाओं के हाथों को स्वरोजगार उपलब्ध करवाती नहीं दिख रही है।

कतरा घास से बनते हैं सामान

मिथिला क्षेत्र में एक तरह के कतरा घास (खर) जो नदियों और तालाबों के किनारे पाई जाती है। इससे घरेलू साजो सामान से लेकर खिलौने तक का निर्माण महिलाओं द्वारा किया जाता है। मिथिलांचल क्षेत्र में अपने से उग आने वाले इस घास को अगस्त – सितम्बर माह में काटा जाता है। इसे सुखाने के बाद विभिन्न रंगों में डुबोकर रंगीन बनाया जाता है। इस कला से बनने वाले कलाकृतियों में भी मिथिला पेंट‍िंग जैसी तस्वीरें बनाने का प्रचलन है । सिक्की कला पर शोध कर चुके डा. विद्यानाथ झा व मणिशंकर झा ने अपने शोधग्रंथ में लिखा है कि सिक्की कला से निर्मित कलाकृति सौ दो सौ वर्षो तक खराब नहीं होती ,इसमें फंगस नहीं लगता है।

सिक्की कला से बनने वाले प्रमुख कलाकृति : सिक्की कला से मौनी, पौती, झप्पा, गुलमा, सजी, बास्केट, आभूषण, खिलौना, पंखा, चटाई सहित घर में सजावट वाली कई प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।

इस कला के लिए मिल चुका है राष्ट्रीय पुरस्कार

सिक्की कला के लिए वर्ष 1969 में मिथिला क्षेत्र के रैयाम गांव निवासी विदेश्वरी देवी को तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया था। जबकि इसी वर्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सिक्की कला के लिए ङ्क्षवदेश्वरी देवी को नेशनल मास्टर क्राफ्ट वुमन आवार्ड से सम्मानित किया था ।आज के समय में सिक्की कला के लिए मुन्नी देवी को कई राष्ट्रीय मंच पर सम्मानित किया जा चुका है।

बेटी की विदाई में इस कला की वस्तु देने की थी परंपरा

मिथिला क्षेत्र में पहले बेटी की विदाई के दौरान सिक्की से बने मौनी, पौती, सजी, पंखा सहित अन्य में बेटी के आभूषण, सिंदुर, सूखा फल सहित अन्य सामग्री दिए जाने का प्रावधान था।

विदेशों में भी इस कलाकृति की है मांग

1986 में धीरेन्द्र कुमार द्वारा सिक्की कला से निर्मित कलाकृति जिसपर शिव के विषपान का का दृश्य चित्रित किया गया था ने अमेरिका, थाईलैंड, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, खाड़ी देश व दक्षिण अफ्रीका में इस कला को पहचान दिलाई और इस कला से निर्मित कलाकृतियों के लिए विदेशों में भी बाजार बना दिए।

Kunal Gupta
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