Thursday, October 10, 2024
Patna

आजादी के लिए देशभक्ति गीत गाने वाले जंग बहादुर सिंह, 102 साल की उम्र में भी जिंदादिली..

हम हर साल जब आजादी का जश्न मनाते हैं तो महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे कई बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हालांकि ऐसे अनगिनत नाम हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। आजादी के इस आंदोलन में गीतों का भी बड़ा महत्व था। ऐसे ही एक भोजपुरी लोक-गायक जंग बहादुर सिंह भी हैं। यह सौभाग्य की बात है कि 102 साल की उम्र में भी वह हमारे बीच हैं लेकिन दूसरी तरफ विडंबना ही है कि उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है। 

 बिहार में सिवान जिले के रघुनाथपुर प्रखण्ड के कौसड़ गांव के रहने-वाले तथा रामायण, महाभारत व देशभक्ति गीतों के उस्ताद भोजपुरी लोक-गायक जंग बहादुर सिंह साठ के दशक का ख्याति प्राप्त नाम रहा है। लगभग दो दशकों तक अपने भोजपुरी गायन से बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर-प्रदेश आदि राज्यों में बिहार का नाम रौशन करने-वाले व्यास शैली के बेजोड़ लोक-गायक जंगबहादुर सिंह आज 102 वर्ष की आयु में गुमनामी के अंधेरे में जीने को विवश हैं।

बुलंद आवाज भर देती थी जोश

10 दिसंबर, 1920 ई. को सिवान, बिहार में जन्में जंगबहादुर पं.बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करते हुए भोजपुरी की व्यास शैली में गायन-कर झरिया, धनबाद,  दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में अपने गायन का परचम लहराते हुए अपने जिले व राज्य का मान बढ़ा चुके हैं। जंग बहादुर के गायन की विशेषता यह रही कि बिना माइक के ही कोसों दूर तक उनकी आवाज़ सुनी जाती थी। आधी रात के बाद उनके सामने कोई टिकता नहीं था, मानो उनकी जुबां व गले में सरस्वती आकर बैठ गई हों। खास-कर भोर में गाये जाने वाले भैरवी गायन में उनका सानी नहीं था। प्रचार-प्रसार से कोसों  दूर रहने-वाले व ‘स्वांतः सुखाय’ गायन करने-वाले इस अनोखे लोक-गायक को अपना ही भोजपुरिया समाज भूल रहा है।

कुश्ती के अखाड़े से सुर-ताल के मैदान तक
जंग बहादुर सिंह पहले पहलवानी करते थे। तमाम दंगलों में कुश्ती लड़े, लेकिन उन्हीं दिनों एक ऐसी घटना घटी कि वह संगीत के दंगल के उस्ताद बन गए।  दरअसल दुगोला के एक कार्यक्रम में तब के तीन बड़े गायक मिलकर एक गायक को हरा रहे थे। दर्शक के रूप में बैठे पहलवान जंग बहादुर सिंह ने इसका विरोध किया और कालांतर में इन तीनों लोगों को गायिकी में हराया भी। उसी कार्यक्रम के बाद जंग बहादुर ने गायक बनने की जिद्द पकड़ ली। धुन के पक्के और बजरंग बली के भक्त जंग बहादुर का मां सरस्वती ने भी साथ दिया। रामायण-महाभारत के पात्रों भीष्म, कर्ण, कुंती, द्रौपदी, सीता, भरत, राम व देश-भक्तों में चंद्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, वीर अब्दुल हमीद,  महात्मा गाँधी आदि कि चरित्र-गाथा गाकर भोजपुरिया जन-मानस में लोकप्रिय हो गए जंग बहादुर सिंह। तब ऐसा दौर था कि जिस कार्यक्रम में नहीं भी जाते थे जंग बहादुर, वहाँ के आयोजक भीड़ जुटाने के लिए पोस्टर-बैनर पर इनकी तस्वीर लगाते थे।

जानेमाने लोक-गायक भर शर्मा व्यास कहते हैं कि उन्हें सरकार के स्तर से सम्मान मिलना चाहिए। जंग बहादुर सिंह का उस ज़माने में नाम लिया जाता था, गायको में। मुझसे बहुत सीनियर हैं। मैं कलकता से उनकी गायिकी सुनने आसनसोल, झरिया, धनबाद आया करता था। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान हरेंद्र सिंह भी उनके फैन हैं। उन्होंने कहा, मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूँ, जिन्होंने जंग बहादुर सिंह को लाइव सुना है।

देशभक्ति के लिए जाना पड़ा जेल
चारों तरफ आज़ादी के लिए संघर्ष चल रहा था। युवा जंग बहादुर देश-भक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देश-भक्ति के गीत गाने लगे। 1942-47 तक आज़ादी के तराने गाने के लिए ब्रिटिश प्रताड़ना के शिकार हुए और जेल भी गए। पर जंग बहादुर रुकने-वाले कहां थे। जंग में भारत की जीत हुई और भारत आज़ाद हुआ। आज़ादी के बाद भी जंग बहादुर महाराणा प्रताप, वीर कुँवर सिंह, महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, चंद्र शेखर आजाद आदि  की वीर-गाथा ही ज्यादा गाते थे और धीरे-धीरे वह लोक-धुन पर देशभक्ति गीत गाने के लिए जाने जाने लगे। साठ के दशक में जंग बहादुर का सितारा बुलंदी पर था।

कठिन पारिवारिक हालात, फिर भी नहीं छोड़ा गाना
सन 1970 ई. में टूट गये थे जंग बहादुर, जब उनके बेटे और बेटी की आकस्मिक मृत्यु हुई। धीरे-धीरे उनका मंचों पर जाना और गाना कम होने लगा। दुर्भाग्य ने अभी पीछा नहीं छोड़ा था, पत्नी महेशा देवी एक दिन खाना बनाते समय बुरी तरह जल गईं। जंग बहादुर को उन्हें भी संभालना था। वह समझ नहीं पा रहे थे कि राग-सुर को संभाले या परिवार को। उनके सुर बिखरने लगे। जिंदगी बेसुरी होने लगी। सन 1980 के आस-पास एक और बेटे की कैंसर से मौत हो गई। फिर तो अंदर से बिल्कुल टूट गये जंग बहादुर। अभी दो बेटे हैं, बड़ा बेटा मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम है। बूढ़े बाप के सामने दिन-भर बिस्तर पर पड़ा रहता है। छोटे बेटे राजू ने परिवार संभाल रखा है। वह विदेश में रहता है।

 लुप्त होती स्मृति में तन्हा जंग बहादुर सिंह
अपने छोटे भाई हिंडाल्को के मजदूर नेता रामदेव सिंह की मृत्यु ( 14 अप्रैल, 2022) के बाद और अकेले पड़ गये हैं जंग बहादुर। वह अकेले में कुछ खोजते रहते हैं। कुछ सोचते रहते हैं। फिर अचानक संगीतमय हो जाते हैं। देशभक्ति गीत गाते-गाते निर्गुण गाने लगते हैं। वीर अब्दुल हमीद व सुभाष चंद्र बोस की गाथा गाते-गाते गाने लगते हैं कि ‘’ जाये के अकेल बा, झमेल कवना काम के।‘’ जानेमाने भोजपुरी कवि मनोज भावुक कहते हैं, जंग बहादुर सिंह को उनके हिस्से का वाजिब हक तो मिलना ही चाहिए। उन्होंने कहा, बाबू जंग बहादुर सिंह के समकालीन रहे भोजपुरी गायक व्यास नथुनी सिंह, वीरेन्द्र सिंह, वीरेन्द्र सिंह धुरान और गायत्री ठाकुर आज हम लोगों के बीच नहीं हैं, पर संगीत-प्रेमी व संगीत-मर्मज्ञ बताते हैं कि इन सभी गायक कलाकारों ने भी जंग बहादुर सिंह का लोहा माना था और इज्ज़त दी थी।

Kunal Gupta
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