नई दु्ल्हन के लिए खास है मिथिलांचल का 14 दिवसीय मधुश्रावणी पर्व,ताकि कभी न टूटे बंधन..
आजमनगर (कटिहार): मिथिलांचल का प्रमुख मधुश्रावणी पर्व इन दिनों धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह पर्व नवविवाहिताएं अपने पति की दीर्घायु होने के लिए रखती हैं। 14 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में सुबह और दोपहर में कथा वाचन होता है। शादी के बाद पड़ने वाले पहले श्रावण कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि से शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक नवविवाहिताएं नाग देवता, गौरी, गणेश और महादेव की पूजा करती हैं। नवविवाहिता सज-संवरकर फूल चुनने बगिया में जाती है। इस दौरान उनकी पूरी टोली होती है और पारंपरिक गायन भी होता है।
बासी फूल से होती है मां गौरी की पूजा
व्रती स्नेहा झा ने बताया कि मधुश्रावणी में बासी फूल से मां गौरी की पूजा होती है। 14 दिनों तक फूल तोड़कर उसे डाली में सजाया जाता है। फिर अगले दिन बासी फूल से मां गौरी की आराधना की जाती है। पूजा के दौरान प्राचीनकाल की कथाएं सुनती हैं।
कथैती वीणा देवी ने बताया की स्कन्द पुराण के मुताबिक नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं। प्राचीन काल में कुरुप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी नवविवाहिता पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल रहा था। पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था। मिथिलांचल में इस पर्व का विशेष महत्व है।
-नाग देवता और मां गौरी की पूजा से मिलता है अखंड सौभाग्यवती का वरदान
-14 दिनों तक व्रत रख करती हैं मां गौरी और नाग देवता की पूजा
– इस पर्व को लेकर सुहागिनों में उत्साह का माहौल भी है
-व्रत कथा के लिए कोई पंडित या पुरोहित नहीं बुलाया जाता है।