Tuesday, November 26, 2024
Patna

Madhushravani Vrat:14 दिवसीय मधुश्रावणी व्रत शुरू,पति की लंबी आयु के लिए नवविवाहित महिलाएं करेंगी पूजा…

Banka Madhushravani Vrat News:बांका: श्रावण मास के कृष्ण पक्ष पंचमी से आरंभ होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न होने वाली मिथिला संस्कृति की पहचान का लोकपर्व मधुश्रावणी पूजा का आज सोमवार से आगाज हो गया है. 14 दिन तक नवविवाहितओं द्वारा की जाने वाली इस पूजा का विशेष महत्व है. ऐसी प्रथा है कि इन दिनों नवविवाहिता ससुराल के द्वारा दिए कपड़े गहने ही पहनती हैं. इसलिए पूजा शुरू होने के एक दिन पूर्व नवविवाहिता के ससुराल से सभी सामग्री भेजी जाती है.

मधुश्रावणी पूजन के महत्व को बताते हुए पंडित सह कथावाचक फणीभूषन पाठक ने कहा कि इस पर्व के करने से सुहागिन महिलाओं के पति की उम्र बढ़ती है. घर में सुख शांति आती है. पूजन के दौरान मैना पंचमी, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, महादेव कथा, गौरी तपस्या, शिव विवाह, गंगा कथा, बिहुला कथा तथा बाल वसंत कथा सहित 14 खंडों में कथा का श्रवण किया जाता है. इस दौरान गांव समाज की बुजुर्ग महिला कथा वाचिकाओं द्वारा नवविवाहितों को समूह में बैठाकर कथा सुनाई जाती है. पूजन के सातवें, आठवें तथा नौवें दिन प्रसाद के रूप में खीर का भोग लगाया जाता है. प्रतिदिन संध्या में महिलाएं आरती, सुहाग गीत तथा कोहबर गाकर भोले शंकर को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं.

क्या है मान्यता?

ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने सबसे पहले मधुश्रावणी व्रत रखा था और जन्म जन्मांतर तक भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करती रहीं. इस पर्व के दौरान माता-पार्वती और भगवान शिव से संबंधित मधुश्रावणी की कथा सुनने की भी मान्यता है. साथ ही साथ बासी फूल, ससुराल से आई पूजन सामग्री, दूध, लावा और अन्य सामग्री के साथ नाग देवता व विषहर की भी पूजा की जाती है.

आज भी बरकरार है परंपरा

बता दें कि सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी बरकरार है. इस पर्व में मिथिला संस्कृति की झलक ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की भी झलक देखने को मिलती है. इस पूजा में लगातार 13 दिनों तक व्रत करने वाली महिलाएं प्रतिदिन एक बार अरवा भोजन करती हैं. इसके साथ ही नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव आदि की प्रतिमा बनाकर प्रतिदिन कई प्रकार के फूलों, मिठाईयों एवं फलों से पूजन करती हैं. सुबह-शाम नाग देवता को दूध लावा का भोग लगाया जाता है. सोमवार को जिले में नवविवाहित महिलाएं पूजा करती दिखीं.

टेमी दागने की है परंपरा

बताया जाता है कि पूजा के अंतिम दिन पूजन करने वाली महिला को कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है. टेमी दागने की परंपरा में नवविवाहिताओं को रूई की टेमी से हाथ एवं पांव को पान के पत्ते रखकर टेमी जलाकर दागा जाता है. पूजा के अंतिम दिन 14 छोटे बर्तनों में दही और फल मिष्ठान सजाकर पूजा की जाती है. साथ ही 14 सुहागिन महिलाओं के बीच प्रसाद का वितरण कर ससुराल पक्ष से आए हुए बुजुर्ग से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. उसके बाद पूजा का समापन होता है.

Kunal Gupta
error: Content is protected !!