दोनों पैरों से दिव्यांग बिहार के अजीत ट्यूशन पढ़ा चला रहे घर,बोले- दिव्यांग होने से ज्यादा दुखदाई है इसे साबित करना ।
जमुई: नाम जरूर बदला लेकिन दिव्यांगता अब भी अभिशाप ही बनी है। विवशता, कमतर होने के एहसास का दर्द दिव्यांगों को दे रही है। ऐसे ही दर्द से गुजर रहे हैं जिले के खैरा प्रखंड के दाबिल गांव के जन्मजात दिव्यांग अजीत कुमार। अजीत दोनों पैर से दिव्यांग हैं। घसिटकर चलना, उनकी मजबूरी है। बावजूद इसके अजीत ने हौसला नहीं खोया और मगध विश्वविद्यालय से साइंस संकाय से गणित विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की।
उच्च शिक्षा प्राप्त अजीत को आर्थिक तंगी और शारीरिक दुश्वारी ने रोजगार व नौकरी से दूर कर दिया है। अजीत ने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ उनकी परेशानी बढ़ती गई। अब वो मुश्किल से घर के एक कमरे से दूसरे कमरे तक घसिटकर जा पाते हैं। इसमें भी दर्द होने लगता है। ऐसी स्थिति में वो प्रतियोगिता परीक्षा के लिए फार्म भरने और परीक्षा देने घर से बाहर नहीं निकल पाते हैं। दिव्यांगता के कारण वो घर में ही कैद होकर रह गए हैं। इसके साथ ही घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है।
ट्यूशन पढ़ा निकाल रहे घर का खर्च
वो गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च निकाल पाते हैं। गांव वालों द्वारा भी पर्याप्त से कम ही ट्यूशन फीस मिलती है। 25 वर्षीय अजीत ने बड़े ही मार्मिक स्वर में कहा कि जिंदगी काट रहे हैं। दिव्यांगता पेंशन के अलावा आज तक कोई लाभ नहीं मिला है। दिव्यांग होने से ज्यादा तकलीफदेह दिव्यांगता साबित करना है। मां इंदू देवी, पिता रविंद्र सिंह ने कहा कि बेटे को देख एक टीस दिल में उठती है। आर्थिक तंगी के कारण हम चाहकर उसके लिए कुछ नहीं कर पाते। वो खुद चल नहीं सकता और हममें उसे उठाकर ले जाने की शक्ति नहीं बची है।