संक्रमित पत्नी को छोड़ करते रहे जांच, ताकि संक्रमणमुक्त हो मुजफ्फरपुर।
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मुजफ्फरपुर। 20 अगस्त
कुशल नेतृत्व। समर्पित स्वास्थ्यकर्मी। बेहतर लैब तकनीशियन। बिना रुके पांच महीने से ड्यूटी। यह कुछ ऐसे वाक्य हैं जो अहसास दिलाते हैं कि कोई भी व्यक्ति ऐसे ही प्रशंसित या पुरस्कृत नहीं होता। इसके पीछे उसकी काम के प्रति अगाध श्रद्धा होती है। कई मायनों में परिवार से भी बढ़कर। ऐसे ही एक वरीय प्रयोगशाला प्रशिक्षक हैं मनोज सिंह। जिन्होंने बिना रुके और थके कोरोना जांच कर एक नया किर्तीमान स्थापित किया और 15 अगस्त के मौके पर कमिश्नर से मेडल भी प्राप्त किया। मनोज को जिला स्तरीय जांच का अधिकारी नियुक्त किया गया था। रैपिड एंटीजन टेस्ट, आरटी -पीसीआर से जांच का लक्ष्य और जिम्मेवारी इनके ही कंधो पर थी। 15 लैब तकनीशियनों का यह नेतृत्व कर रहे थे। इनके सफल नेतृत्व और समर्पण का ही फल था कि मुज्फ्फरपुर ने प्रतिदिन 5000 से 7000 एंटीजन और 1600 आरटी-पीसीआर टेस्ट के लक्ष्य को पूरा करते हुए जिले को संक्रमणमुक्त रखने में प्रयासरत रहे।
पांच महीने सिर्फ खाने के लिए जाते थे घर
मनोज सिंह कहते हैं दूसरी लहर में मैं सदर अस्पताल स्थित कोविड जांच घर में पदस्थापित था। 15 लोग मेरे नेतृत्व में कार्य रहे थे। संक्रमण की बढ़ती दर ने बहुत मुश्किलें पैदा की। भीड़ को नियंत्रित कराना। लोगों को कोविड के नियमों का पालन कराना। किसी कर्मी के छुट्टी में रहने पर भी टेस्ट के लक्ष्य को पूरा करना, जैसी बातें प्रतिदिन झेलनी पड़ती थी। इसी क्रम में मेरी पत्नी और बच्चे भी संक्रमित हो गए। मन तो बहुत किया कि कुछ दिन छुट्टी पर रहकर उनकी सेवा करुं, पर शहर में संक्रमण की दर और लोगों की चिंता ने मुझे हमेशा ही अपने ड्यूटी पर तैनात रखा। इसी क्रम में कब पांच महीने बीत गए मुझे पता भी नहीं चला। मैं घर सिर्फ खाना खाने जाता था। फिर जांच केंद्र पर लौट आता था। इस बीच कई बार घर में विवाद की स्थिति भी बनी, पर मेरी प्राथमिकता मेरी ड्यूटी ही थी।
समय पर रिपोर्ट देना था अहम
मनोज सिंह कहते हैं कि जांच करना तो आधी जिम्मेदारी थी। मुख्य जिम्मेदारी जांच की रिपोर्ट को ससमय देना था। जिससे संक्रमित खुद को आइसोलेट कर पाएं। लोगों का ईलाज जल्द शुरु हो सकें। इसके लिए कई बार रात भर जाग कर भी काम करना पड़ा। अब जाकर संक्रमितों की संख्या कमी है। इस बीच मैं कभी भी संक्रमित नहीं हुआ।